LOVE STORY

29/10/2012 22:09

         एक सपना                                                                                                                               

एक लड़की ख़ूबसूरत लड़की सपनो में आई | जिस जगह हम रह रहे थे | उसी जगह उसका ठिकाना था | चंद पल चंद लम्हे काफी होते है | घुलने मिलने के लिए, पर उस जगह मै काफी दिन रहा | धीरे धीरे मै उससे घुल मिल गया | और जब जाने लगा वहाँ से तो एक खालीपन महसूस हुआ | लगा कुछ अपना बिछड़ रहा है | और उसी शाम , जाने से पहले वाली शाम , बिछुड़ने से पहले वाली शाम ,अब भी याद है वो शाम मेरे एक प्यारे से दोस्त ने शायद भांप लिया था उन बातो को | तभी तो वो घूमने निकले शाम को साथ लिया तो सिर्फ हम दोनों को , तीसरे किसी को नहीं |फिर चंद कदम साथ चलके लौट आये वो | जाते वक्त कहा – अच्छा अब आप दोनों घूमिये हम थोरी देर में आ रहे है | और वो चले गए | मौका नाजुक था | बात दिल में दबी थी मेरे मगर जुबान पर नहीं आ रही थी | जो कहना मुझे था वो उसने कह दिया – मै तेरे बगैर अब नहीं रह सकती कन्हैया | और तब घूमने का एक लम्बा दौर चला | उसने बढ़कर मेरा हाथ पकड़ लिया | और फिर न जाने क्यूँ उसका मेरे साथ रहना मुझे अच्छा लगा | लेकिन फिर मैंने उससे कहा – देखो चंद ख़ूबसूरत पल हमने साथ मिलकर बिताये उसका मतलब मोहब्बत नहीं था | भगवन ने हमें समय दिया था तो सिर्फ बात करने के लिये और फिर देख लो ये सच्चाई है की मै किसी से मोहब्बत नहीं कर सकता | किसी से भी नहीं, मेरा अलग रास्ता है | देखने में हरा भरा तालाब जरूर नजर आता हूँ मै | मगर मै एक मृग मरीचिका हूँ ,पास आने पर जहाँ रेत ही रेत है कुछ नहीं मिलेगा तुमको मुझसे | “अगर तुम रेत हो तो मुझे ये रेत ही चाहिए “ वो बोली थी | जुनूनी हो रही थी वो |

    मैंने तर्कों की सवारी शुरू की – देखो मेरे चेहरे की या बातो की सुन्दरता पर मत जाओ | मेरी आँखों में अब भूलकर मत झांको | मै काला हूँ तुम गोरी हो मुझे काला समझ कर भूल जाओ |

                  कैसे भूल जाऊँ ? – उसने कहा था |

   मैंने आखिरी हथियार उठा लिये – देखो तुम मुझसे मोहब्बत करती हो ? उसने कहा - हाँ |

किस तरह का ? – मैंने पूछा था | तुम्हे पाना चाहती हूँ – जवाब था | - हर पल तुम्हारे साथ रहना चाहती हूँ | मैंने कहा - मुझे पाना चाहती हूँ और तुम्हारे प्यार में ये स्वार्थ भी है | क्या तुम मेरे लिये कुछ नहीं कर सकती ? अगर तुम मुझसे सच्ची मोहब्बत करती हो तो कमसे कम मेरा एक कम तो करोगी |

     उसके चेहरे पर हरियाली दौर आई – हाँ ! उसने हाँ कहा था | तो फिर मेरी खातिर तुम मुझे हमेशा के लिये भूल जाओ | वो बोली थी – ये मुमकिन नहीं है | अंधेरो में शाम का धुंधलका बदल चूका था | तब मैंने कहा – कम से कम इतना तो कर सकती हो की मुझसे हमेशा के लिये दूर हो जाओ | बड़ी गौर से देखा उसने मेरी आँखों में ... शरारत का जहाँ कोई नाम नहीं था | थोड़ी देर छुप रही वो | फिर धीरे से कहा – हाँ और फिर मेरे कंधो पर सिर रखकर रोने लगी वो |

             कोई पांच मिनट तक रोके चली गई वो | उसके जाने के बाद भी मै बैठा एक खालीपन महसूस कर रहा था | मेरे तमाम तर्कों की धज्जियाँ उसके चंद आँसूओं ने उड़ा दिए थे | मै खुद को बौना महसूस कर रहा था |

      

                                                                                              शुषेण कुमार गिरि

                                                                                               B.Sc. Hons. Sam.